दलमा में चार हिरण, छह सुअर व एक खरगोश का सेंदरा
- वन विभाग की लुंज-पुंज व्यवस्था का फायदा उठा गये शिकारी, खूब हुआ शिकार
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आदिवासी समाज के लोगों ने हाथों में तीर-धनुष व भाला लिये दलमा जंगल में सोमवार को सेंदरा किया। वन्य प्राणियों का शिकार करने के इस पर्व पर 'आदिवासी परंपराÓ के नाम पर एक बार फिर चार हिरणों व छह जंगली सुअरों समेत एक खरगोश का शिकार कर डाला गया। लंबे अरसे बाद दलमा सेंदरा में इतनी बड़ी संख्या में वन्य जीवों का शिकार किया गया है।
इस बार वन विभाग की लुंज-पुंज व्यवस्था का आदिवासी शिकारियों ने पूरा फायदा उठाया। वन विभाग के कर्मचारी फदलोगोड़ा से लेकर हलुदबनी तक के बीच तैनात रहे और उधर शिकारी अपना काम कर गये। हालांकि हर साल की तरह इस बार भी वन विभाग ने सेंदरा में जानवरों का शिकार होने के तथ्य से मुंह फेरते हुए इसे नकार दिया। अव्वल यह कि दोलमा बुरु सेंदरा समिति को भी वन विभाग से 'हाथ मिलाताÓ देख आदिवासियों ने शिकार की भनक तक नहीं लगने दी।सेंदरा पर्व में दिलचस्प बात यह दिखी कि इस बार आदिवासी शिकारियों ने दोलमा बुरु सेंदरा समिति के दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम का नेतृत्व स्वीकारने के बजाय पटमदा की ओर से जंगल में चढऩा ज्यादा ठीक समझा और अपने स्तर पर खुद सेंदरा किया। वैसे तो नियमत: दोलमा राजा को शिकार का हिस्सा दिया जाता है, लेकिन चूंकि पहले ही राकेश हेम्ब्रम से अलग होकर फकीर चंद्र ने अलग समिति बना सेंदरा कराया, सो आदिवासियों ने गुटबाजी के कारण दोनों को दरकिनार कर खुद सेंदरा कर लिया। सेंदरा के बाद शिकारी जंगल के पिछले रास्ते से शिकार लेकर निकल गये। न राकेश हेम्ब्रम को हिस्सा दिया न जानकारी।
झारखंड के आदिवासी हर साल दलमा में सेंदरा पर्व यानी शिकार पर्व मनाते हैं। इस बार भी सोमवार को सेंदरा पर्व मनाया गया। दलमा की तलहटी, फदलोगोड़ा में दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम द्वारा पारंपरिक पूजा की गई। इसके बाद शिकारी तीर-धनुष व तलवार-भाला लेकर दलमा जंगल में चढ़ाई कर गये। शिकारी तड़के चार बजे ही शिकार करने दलमा चढ़ गये थे। शिकार लेकर उतरने वाले शिकारी शाम होने के बाद जंगल से उतरे। वन विभाग को इस बात से संतोष करना होगा कि दोलमा बुरु सेंदरा समिति के बैनर तले उसकी (विभाग की) उम्मीद के मुताबिक औपचारिक तौर पर बेहद कम शिकारी आए। वन विभाग के पदाधिकारी इसके लिए दलमा में सोमवार को खुद की पीठ थपथपाते भी दिखे।
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