Monday, May 16, 2016
हाथ मलता रहा वन विभाग, जमकर हुआ सेंदरा
- सेंदरा समितियों की गुटबाजी का दिखा असर, सेंदरावीरों ने समितियों को दरकिनार कर किया सेंदरा
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : कोई जागरूकता काम न आई, कोई मेल-मिलाप रंग नहीं लाया। दलमा में जमकर सेंदरा हुआ। वन विभाग के पदाधिकारी हाथ मलते रह गये और आदिवासी शिकारी थोक के भाव जंगली जानवरों को तीर से मार शिकार लेकर चलते बने। वन विभाग ने नाइट फुटबॉल प्रतियोगिता व सिंगराई के बहाने आदिवासी शिकारियों को दलमा तल पर ठगे रखने की रणनीति बनाई थी, लेकिन खुद वन विभाग शिकारियों की चालाकी के आगे ठगा रह गया। अव्वल यह कि वन विभाग से सेंदरा समितियों की 'दोस्तीÓ के कारण शिकारियों ने इन समितियों से भी दूरी बना ली और गुपचुप शिकार कर जंगल से रफू हो गये। साथ में ले गये चार हिरण, छह जंगली सूअर व एक खरगोश। शिकार तो हुआ ही, वन विभाग के सहयोग से जो लोग शिकार करने जंगल नहीं चढ़े उनका रात भर फुटबॉल व सिंगराई के बहाने मनोरंजन होता रहा। वन विभाग इस उम्मीद में थी कि लोग फुटबॉल खेल थक जाएंगे तो शिकार करने जंगल नहीं चढ़ेंगे, लेकिन फुटबॉलर फुटबॉल खेलते रहे और शिकारी पिछले रास्ते से शिकार करते रहे।
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परंपराएं टूटी, सेंदरा समितियां दरकिनार
इस बार के सेंदरा में परंपराएं टूटी। मान्यताएं भी नहीं मानी गई। वरना परंपराएं और मान्यताएं तो ऐसी थी कि शिकार करने के बाद शिकारी को छोटे से छोटे शिकार को भी दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम के यहां लाना पड़ता और उसका (शिकार का) हिस्सा बांटना पड़ता। ऐसा इस बार नहीं हुआ। शिकारियों ने अपनी खुद की व्यवस्था कर रखी थी। सेंदरा समितियों की गुटबाजी इसके लिए जिम्मेदार बताई गई। दो सेंदरा समितियों ने अलग-अलग जिराव टांडी (विश्राम स्थल) बना रखे थे। एक पारंपरिक दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम के नेतृत्व में फदलोगोड़ा में तो दूसरा इससे अलग गुट बना समिति बनाने वाले फकीरचंद्र सोरेन के नेतृत्व में। इस गुटबाजी ने अधिकांश आदिवासी शिकारियों को अलग राह चुनने को मजबूर किया और अधिकांश शिकारी अपने रास्ते शिकार कर जंगल से घर चले गये।
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ढीली रही वन विभाग की व्यवस्था
पहली बार सेंदरा के दौरान वन विभाग की व्यवस्था काफी ढीली दिखी। सेंदरा के दौरान फदलोगोड़ा से लेकर पातीपानी तक वन विभाग के कर्मी खोजे नहीं मिले। सिर्फ आरएफओ के साथ दो ही गाड़ी बीच-बीच में राउंड करती दिखी। इसके अलावा सिर्फ हलुदबनी के समीप पटमदा से डिमना जाने वाले रोड पर खाकी वर्दी में तीन-चार वनकर्मी दिखे। इसके अलावा कहीं चौकसी तगड़ी नहीं दिखी। दरअसल, सेंदरा समितियों ने वन विभाग को आश्वासन दिया था कि इस बार कोई सेंदरा नहीं होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वन विभाग आश्वासन की घुïट्टी पिये आराम फरमाता रहा और जंगल में चार हिरण, छह सूअर व एक खरगोश मार दिये गये। पहले शिकारियों की टोह लेने के लिए वन विभाग सेंदरा आने वाले शिकारियों के लिए चना-पानी का शिविर भी लगाती थी, ताकि सूचना मिलती रहे और शिकारियों पर दबाव बना रहे, लेकिन इस बार वन विभाग की रणनीतिक चूक के कारण इसका भी इंतजाम नहीं किया गया था।
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कम आए शिकारी, विभाग ने अपनी पीठ थपथपाई
इस बार सेंदरा में कम शिकारी आए। भीड़-भाड़ बेहद कम दिखी। कम से कम फदलोगोड़ा जिराव टांडी व फकीर सोरेन के जिराव टांडी में तो सेंदरा बीर कम ही दिखे। यह अलग बात है कि शिकारी इस बार औपचारिक सेंदरा समितियों की शरण में संख्या गिनाने के बजाय गुपचुप शिकार तरीके से शिकार करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते दिखे। बहरहाल कम शिकारियों के आने से वन विभाग के अधिकारी दिन भर अपनी पीठ थपथपाते दिखे। सेंदरा के दौरान वन विभाग ने दलमा वन आश्रयणी के रास्ते ऊपर चढऩे की भी मनाही कर रखी थी, लेकिन इसका कोई खास असर सेंदरा पर नहीं पड़ा।
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इधर खाट पर बैठ समितियों से हाथ मिलाते रहे, उधर शिकार होता रहा
वन विभाग के दलमा रेंज अफसर आरपी सिंह व एसीएफ गुमला मंगल कच्छप दलमा की तलहटी पर स्थित तालगोड़ा गांव में खाट पर बैठ दोपहर में सुस्ताते रहे और उधर जमकर जानवरों का शिकार होता रहा। तालगोड़ा में वे दोलमा बुरु सेंदरा समिति के प्रधान सह दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम से हाथ मिलाते रहे और शिकारी अपना काम करते रहे। उनसे जब दैनिक जागरण संवाददाता ने सेंदरा के बारे में पूछा गया कि कहीं कुछ शिकार की जानकारी है? सवाल के जवाब में मंगल कच्छप ने कहा-'आपको जितनी जानकारी है हमें भी उतनी है।Ó इस दौरान वन अधिकारियों ने यह नहीं जानना चाहा कि हमें क्या जानकारी है, क्योंकि हमें तो जमकर शिकार होने की जानकारी थी। बहरहाल वे देर तक तालगोड़ा में सुस्ताते रहे। दोलमा राजा से आरपी सिंह ने यहां तंज कसते हुए कहा कि लगता है आपका प्रभाव कम हो गया है, गदरा से सबसे ज्यादा शिकारी आए हैं। दोलमा राता ने लगे हाथों कह दिया कि शिकारी तो आएं ही है, मेरा खुद का बेटा भी शिकार करने दलमा चढ़ा है। साथ ही कहा कि देखिये कितना शांतिपूर्ण सेंदरा हुआ।
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सड़क अवरुद्ध कर शिकार को लगाया ठिकाने
शिकारियों ने पातीपानी गांव से ठीक सटकर बसे गांव हलुदबनी में भी शिकार किये जानवरों को ठिकाने लगाया। वही पातीपानी, जहां से वन विभाग की गाड़ी निरीक्षण कर लौटी थी। यहां मुख्य मार्ग से गांव होते दलमा की ओर घुसी सड़क पर पेड़ गिराकर व पत्थर रखकर सड़क को शिकारियों ने अवरुद्ध कर दिया था। सड़क अवरुद्ध कर यहां शिकार किये जानवरों को ठिकाने लगाया गया। वन विभाग ने चुस्ती दिखाई होती तो उन जगहों पर जरूर पहुंचती, जहां संवाददाताओं के कैमरे पहुंचे, लेकिन वन विभाग एनएच-33 पर ही गश्ती मार कर ड्यूटी पूरी कर रही थी। जो संख्या शिकार किये गये जानवरों की मिल रही है वह तो वे हैं जिनतक संवाददाता पहुंचे, इसके अलावे भी शिकार हुए होंगे जहां तक कैमरे भी नहीं पहुंच पाये।
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अच्छी वर्षा के लिए हुई सेंदरा पूजा
सेंदरा पर्व को लेकर आदिवासी समाज में मान्यता है कि इसकी पूजा होने पर अच्छी वर्षा होती है और खेती-बाडी का काम अवरुद्ध नहीं होता। इसलिए इस बार भी सोमवार को सेंदरा पर्व पर एक ओर जहां दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम के गुट ने सेंदरा पूजा की तो वहीं फीकर चंद्र सोरेन की टीम ने भी सेंदरा पूजा कर अच्छी बारिश की मन्नत मांगी। आकाश में बादलों के उमडऩे से भी सेंदरा पर्व की मन्नत पूरी होने की आशा व्यक्त की गई। पूजा के बाद ही शिकारी दलमा में शिकार करने चढ़े।
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हंडिय़ा की खूब रही डिमांड, मस्त दिखे शिकारी
सेंदरा के लिए फदलगोड़ा में बनाई गई विश्रामस्थली पर आदिवासियों के पारंपरिक पेय हंडिय़ा की खूब डिमांड दिखी। सेंदरा करने पहुंचे सेंदरावीर हंडिय़ा पीते दिखे। आसपास के लोगों द्वारा हंडिय़ा की दुकान सजाई गई थी। हंडिय़ा से जिनका मन नहीं मान रहा था, उनके लिए फदलोगोड़ा में बीयर की भी व्यवस्था थी। सेंदरा वीर इसे पीने में भी मस्त दिखे।
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परंपराएं ऐसी-ऐसी भी
- घर के किसी व्यक्ति के सेंदरा पर जाने पर घर की महिलाएं सिंदूर व तेल नहीं लगातीं। परिवार के सदस्य के सेंदरा से वापस लौटने के बाद ही सिंदूर व तेल लगाया जाता है।
- सेंदरा में निकले से पहले घर के पूजा घर में लोटा में पानी रखा जाता है। लोटा का पानी कम होने पर उसे अशुभ माना जाता है। जो भी व्यक्ति सेंदरा में जाता है वह लोटा में पानी भर जाता है।
- सेंदरा से लौटने पर घर पर पैर धोकर सेंदरावीर का स्वागत होता है। घर की महिलाओं द्वारा पैर धोने के बाद ही सेंदरा वीर घर में प्रवेश करते हैं।
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सेंदरा समितियों से खफा रहे शिकारी
''हम लोग इतनी दूर से सेंदरा करने पहुंचे हैं, लेकिन हमें यहां कोई व्यवस्था नहीं दिखी। समिति को एक तिरपाल तो लगाना चाहिए था। ऐसी व्यवस्था से परंपरा लुप्त हो जाएगी।ÓÓ
- गोजेन सोरेन, शिकारी
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पहले विश्राम स्थल पर एक तिरपाल तो कम से कम लगता था, ताकि शिकारियों को पता चले कि यहां जिराव टांडी है। इसबार ऐसा कुछ नहीं। ऐसे में तो शिकारियों को मुश्किल होगी ही। व्यवस्था ठीक नहीं रही।
- गोविंदा हांसदा, शिकारी
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हम लोग इतनी दूर से सेंदरा पर्व मनाने आए हैं, लेकिन यहां सब अव्यवस्थित है। हमें अपनी परंपरा को बचाने के लिए इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। जिराव टांडी की व्यवस्था में सुधार होना चाहिए।
- तुरता मुर्मू, शिकारी
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शिकार करने आया था। आते तो पता ही नहीं चला कि विश्राम स्थल कहां है। न कोई तिरपाल, न कोई स्टेज। कैसे पता चलेगा कहां शिकारी रात को ठहरेंगे।
- सोपेन मुंडा, शिकारी
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हमें हमारी परंपरा को समेटने के लिए व्यस्थित होना पड़ेगा। ऐसे तो यह परंपरा लुप्त हो जाएगी। शिकार करना बड़ी बात नहीं, बड़ी बात है कि हम अपनी परंपरा को बचा ले जाएं।
- सिंगराई मुर्मू, शिकारी
- सेंदरा समितियों की गुटबाजी का दिखा असर, सेंदरावीरों ने समितियों को दरकिनार कर किया सेंदरा
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : कोई जागरूकता काम न आई, कोई मेल-मिलाप रंग नहीं लाया। दलमा में जमकर सेंदरा हुआ। वन विभाग के पदाधिकारी हाथ मलते रह गये और आदिवासी शिकारी थोक के भाव जंगली जानवरों को तीर से मार शिकार लेकर चलते बने। वन विभाग ने नाइट फुटबॉल प्रतियोगिता व सिंगराई के बहाने आदिवासी शिकारियों को दलमा तल पर ठगे रखने की रणनीति बनाई थी, लेकिन खुद वन विभाग शिकारियों की चालाकी के आगे ठगा रह गया। अव्वल यह कि वन विभाग से सेंदरा समितियों की 'दोस्तीÓ के कारण शिकारियों ने इन समितियों से भी दूरी बना ली और गुपचुप शिकार कर जंगल से रफू हो गये। साथ में ले गये चार हिरण, छह जंगली सूअर व एक खरगोश। शिकार तो हुआ ही, वन विभाग के सहयोग से जो लोग शिकार करने जंगल नहीं चढ़े उनका रात भर फुटबॉल व सिंगराई के बहाने मनोरंजन होता रहा। वन विभाग इस उम्मीद में थी कि लोग फुटबॉल खेल थक जाएंगे तो शिकार करने जंगल नहीं चढ़ेंगे, लेकिन फुटबॉलर फुटबॉल खेलते रहे और शिकारी पिछले रास्ते से शिकार करते रहे।
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परंपराएं टूटी, सेंदरा समितियां दरकिनार
इस बार के सेंदरा में परंपराएं टूटी। मान्यताएं भी नहीं मानी गई। वरना परंपराएं और मान्यताएं तो ऐसी थी कि शिकार करने के बाद शिकारी को छोटे से छोटे शिकार को भी दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम के यहां लाना पड़ता और उसका (शिकार का) हिस्सा बांटना पड़ता। ऐसा इस बार नहीं हुआ। शिकारियों ने अपनी खुद की व्यवस्था कर रखी थी। सेंदरा समितियों की गुटबाजी इसके लिए जिम्मेदार बताई गई। दो सेंदरा समितियों ने अलग-अलग जिराव टांडी (विश्राम स्थल) बना रखे थे। एक पारंपरिक दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम के नेतृत्व में फदलोगोड़ा में तो दूसरा इससे अलग गुट बना समिति बनाने वाले फकीरचंद्र सोरेन के नेतृत्व में। इस गुटबाजी ने अधिकांश आदिवासी शिकारियों को अलग राह चुनने को मजबूर किया और अधिकांश शिकारी अपने रास्ते शिकार कर जंगल से घर चले गये।
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ढीली रही वन विभाग की व्यवस्था
पहली बार सेंदरा के दौरान वन विभाग की व्यवस्था काफी ढीली दिखी। सेंदरा के दौरान फदलोगोड़ा से लेकर पातीपानी तक वन विभाग के कर्मी खोजे नहीं मिले। सिर्फ आरएफओ के साथ दो ही गाड़ी बीच-बीच में राउंड करती दिखी। इसके अलावा सिर्फ हलुदबनी के समीप पटमदा से डिमना जाने वाले रोड पर खाकी वर्दी में तीन-चार वनकर्मी दिखे। इसके अलावा कहीं चौकसी तगड़ी नहीं दिखी। दरअसल, सेंदरा समितियों ने वन विभाग को आश्वासन दिया था कि इस बार कोई सेंदरा नहीं होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वन विभाग आश्वासन की घुïट्टी पिये आराम फरमाता रहा और जंगल में चार हिरण, छह सूअर व एक खरगोश मार दिये गये। पहले शिकारियों की टोह लेने के लिए वन विभाग सेंदरा आने वाले शिकारियों के लिए चना-पानी का शिविर भी लगाती थी, ताकि सूचना मिलती रहे और शिकारियों पर दबाव बना रहे, लेकिन इस बार वन विभाग की रणनीतिक चूक के कारण इसका भी इंतजाम नहीं किया गया था।
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कम आए शिकारी, विभाग ने अपनी पीठ थपथपाई
इस बार सेंदरा में कम शिकारी आए। भीड़-भाड़ बेहद कम दिखी। कम से कम फदलोगोड़ा जिराव टांडी व फकीर सोरेन के जिराव टांडी में तो सेंदरा बीर कम ही दिखे। यह अलग बात है कि शिकारी इस बार औपचारिक सेंदरा समितियों की शरण में संख्या गिनाने के बजाय गुपचुप शिकार तरीके से शिकार करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते दिखे। बहरहाल कम शिकारियों के आने से वन विभाग के अधिकारी दिन भर अपनी पीठ थपथपाते दिखे। सेंदरा के दौरान वन विभाग ने दलमा वन आश्रयणी के रास्ते ऊपर चढऩे की भी मनाही कर रखी थी, लेकिन इसका कोई खास असर सेंदरा पर नहीं पड़ा।
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इधर खाट पर बैठ समितियों से हाथ मिलाते रहे, उधर शिकार होता रहा
वन विभाग के दलमा रेंज अफसर आरपी सिंह व एसीएफ गुमला मंगल कच्छप दलमा की तलहटी पर स्थित तालगोड़ा गांव में खाट पर बैठ दोपहर में सुस्ताते रहे और उधर जमकर जानवरों का शिकार होता रहा। तालगोड़ा में वे दोलमा बुरु सेंदरा समिति के प्रधान सह दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम से हाथ मिलाते रहे और शिकारी अपना काम करते रहे। उनसे जब दैनिक जागरण संवाददाता ने सेंदरा के बारे में पूछा गया कि कहीं कुछ शिकार की जानकारी है? सवाल के जवाब में मंगल कच्छप ने कहा-'आपको जितनी जानकारी है हमें भी उतनी है।Ó इस दौरान वन अधिकारियों ने यह नहीं जानना चाहा कि हमें क्या जानकारी है, क्योंकि हमें तो जमकर शिकार होने की जानकारी थी। बहरहाल वे देर तक तालगोड़ा में सुस्ताते रहे। दोलमा राजा से आरपी सिंह ने यहां तंज कसते हुए कहा कि लगता है आपका प्रभाव कम हो गया है, गदरा से सबसे ज्यादा शिकारी आए हैं। दोलमा राता ने लगे हाथों कह दिया कि शिकारी तो आएं ही है, मेरा खुद का बेटा भी शिकार करने दलमा चढ़ा है। साथ ही कहा कि देखिये कितना शांतिपूर्ण सेंदरा हुआ।
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सड़क अवरुद्ध कर शिकार को लगाया ठिकाने
शिकारियों ने पातीपानी गांव से ठीक सटकर बसे गांव हलुदबनी में भी शिकार किये जानवरों को ठिकाने लगाया। वही पातीपानी, जहां से वन विभाग की गाड़ी निरीक्षण कर लौटी थी। यहां मुख्य मार्ग से गांव होते दलमा की ओर घुसी सड़क पर पेड़ गिराकर व पत्थर रखकर सड़क को शिकारियों ने अवरुद्ध कर दिया था। सड़क अवरुद्ध कर यहां शिकार किये जानवरों को ठिकाने लगाया गया। वन विभाग ने चुस्ती दिखाई होती तो उन जगहों पर जरूर पहुंचती, जहां संवाददाताओं के कैमरे पहुंचे, लेकिन वन विभाग एनएच-33 पर ही गश्ती मार कर ड्यूटी पूरी कर रही थी। जो संख्या शिकार किये गये जानवरों की मिल रही है वह तो वे हैं जिनतक संवाददाता पहुंचे, इसके अलावे भी शिकार हुए होंगे जहां तक कैमरे भी नहीं पहुंच पाये।
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अच्छी वर्षा के लिए हुई सेंदरा पूजा
सेंदरा पर्व को लेकर आदिवासी समाज में मान्यता है कि इसकी पूजा होने पर अच्छी वर्षा होती है और खेती-बाडी का काम अवरुद्ध नहीं होता। इसलिए इस बार भी सोमवार को सेंदरा पर्व पर एक ओर जहां दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम के गुट ने सेंदरा पूजा की तो वहीं फीकर चंद्र सोरेन की टीम ने भी सेंदरा पूजा कर अच्छी बारिश की मन्नत मांगी। आकाश में बादलों के उमडऩे से भी सेंदरा पर्व की मन्नत पूरी होने की आशा व्यक्त की गई। पूजा के बाद ही शिकारी दलमा में शिकार करने चढ़े।
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हंडिय़ा की खूब रही डिमांड, मस्त दिखे शिकारी
सेंदरा के लिए फदलगोड़ा में बनाई गई विश्रामस्थली पर आदिवासियों के पारंपरिक पेय हंडिय़ा की खूब डिमांड दिखी। सेंदरा करने पहुंचे सेंदरावीर हंडिय़ा पीते दिखे। आसपास के लोगों द्वारा हंडिय़ा की दुकान सजाई गई थी। हंडिय़ा से जिनका मन नहीं मान रहा था, उनके लिए फदलोगोड़ा में बीयर की भी व्यवस्था थी। सेंदरा वीर इसे पीने में भी मस्त दिखे।
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परंपराएं ऐसी-ऐसी भी
- घर के किसी व्यक्ति के सेंदरा पर जाने पर घर की महिलाएं सिंदूर व तेल नहीं लगातीं। परिवार के सदस्य के सेंदरा से वापस लौटने के बाद ही सिंदूर व तेल लगाया जाता है।
- सेंदरा में निकले से पहले घर के पूजा घर में लोटा में पानी रखा जाता है। लोटा का पानी कम होने पर उसे अशुभ माना जाता है। जो भी व्यक्ति सेंदरा में जाता है वह लोटा में पानी भर जाता है।
- सेंदरा से लौटने पर घर पर पैर धोकर सेंदरावीर का स्वागत होता है। घर की महिलाओं द्वारा पैर धोने के बाद ही सेंदरा वीर घर में प्रवेश करते हैं।
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सेंदरा समितियों से खफा रहे शिकारी
''हम लोग इतनी दूर से सेंदरा करने पहुंचे हैं, लेकिन हमें यहां कोई व्यवस्था नहीं दिखी। समिति को एक तिरपाल तो लगाना चाहिए था। ऐसी व्यवस्था से परंपरा लुप्त हो जाएगी।ÓÓ
- गोजेन सोरेन, शिकारी
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पहले विश्राम स्थल पर एक तिरपाल तो कम से कम लगता था, ताकि शिकारियों को पता चले कि यहां जिराव टांडी है। इसबार ऐसा कुछ नहीं। ऐसे में तो शिकारियों को मुश्किल होगी ही। व्यवस्था ठीक नहीं रही।
- गोविंदा हांसदा, शिकारी
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हम लोग इतनी दूर से सेंदरा पर्व मनाने आए हैं, लेकिन यहां सब अव्यवस्थित है। हमें अपनी परंपरा को बचाने के लिए इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। जिराव टांडी की व्यवस्था में सुधार होना चाहिए।
- तुरता मुर्मू, शिकारी
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शिकार करने आया था। आते तो पता ही नहीं चला कि विश्राम स्थल कहां है। न कोई तिरपाल, न कोई स्टेज। कैसे पता चलेगा कहां शिकारी रात को ठहरेंगे।
- सोपेन मुंडा, शिकारी
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हमें हमारी परंपरा को समेटने के लिए व्यस्थित होना पड़ेगा। ऐसे तो यह परंपरा लुप्त हो जाएगी। शिकार करना बड़ी बात नहीं, बड़ी बात है कि हम अपनी परंपरा को बचा ले जाएं।
- सिंगराई मुर्मू, शिकारी
दलमा में चार हिरण, छह सुअर व एक खरगोश का सेंदरा
- वन विभाग की लुंज-पुंज व्यवस्था का फायदा उठा गये शिकारी, खूब हुआ शिकार
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आदिवासी समाज के लोगों ने हाथों में तीर-धनुष व भाला लिये दलमा जंगल में सोमवार को सेंदरा किया। वन्य प्राणियों का शिकार करने के इस पर्व पर 'आदिवासी परंपराÓ के नाम पर एक बार फिर चार हिरणों व छह जंगली सुअरों समेत एक खरगोश का शिकार कर डाला गया। लंबे अरसे बाद दलमा सेंदरा में इतनी बड़ी संख्या में वन्य जीवों का शिकार किया गया है।
इस बार वन विभाग की लुंज-पुंज व्यवस्था का आदिवासी शिकारियों ने पूरा फायदा उठाया। वन विभाग के कर्मचारी फदलोगोड़ा से लेकर हलुदबनी तक के बीच तैनात रहे और उधर शिकारी अपना काम कर गये। हालांकि हर साल की तरह इस बार भी वन विभाग ने सेंदरा में जानवरों का शिकार होने के तथ्य से मुंह फेरते हुए इसे नकार दिया। अव्वल यह कि दोलमा बुरु सेंदरा समिति को भी वन विभाग से 'हाथ मिलाताÓ देख आदिवासियों ने शिकार की भनक तक नहीं लगने दी।सेंदरा पर्व में दिलचस्प बात यह दिखी कि इस बार आदिवासी शिकारियों ने दोलमा बुरु सेंदरा समिति के दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम का नेतृत्व स्वीकारने के बजाय पटमदा की ओर से जंगल में चढऩा ज्यादा ठीक समझा और अपने स्तर पर खुद सेंदरा किया। वैसे तो नियमत: दोलमा राजा को शिकार का हिस्सा दिया जाता है, लेकिन चूंकि पहले ही राकेश हेम्ब्रम से अलग होकर फकीर चंद्र ने अलग समिति बना सेंदरा कराया, सो आदिवासियों ने गुटबाजी के कारण दोनों को दरकिनार कर खुद सेंदरा कर लिया। सेंदरा के बाद शिकारी जंगल के पिछले रास्ते से शिकार लेकर निकल गये। न राकेश हेम्ब्रम को हिस्सा दिया न जानकारी।
झारखंड के आदिवासी हर साल दलमा में सेंदरा पर्व यानी शिकार पर्व मनाते हैं। इस बार भी सोमवार को सेंदरा पर्व मनाया गया। दलमा की तलहटी, फदलोगोड़ा में दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम द्वारा पारंपरिक पूजा की गई। इसके बाद शिकारी तीर-धनुष व तलवार-भाला लेकर दलमा जंगल में चढ़ाई कर गये। शिकारी तड़के चार बजे ही शिकार करने दलमा चढ़ गये थे। शिकार लेकर उतरने वाले शिकारी शाम होने के बाद जंगल से उतरे। वन विभाग को इस बात से संतोष करना होगा कि दोलमा बुरु सेंदरा समिति के बैनर तले उसकी (विभाग की) उम्मीद के मुताबिक औपचारिक तौर पर बेहद कम शिकारी आए। वन विभाग के पदाधिकारी इसके लिए दलमा में सोमवार को खुद की पीठ थपथपाते भी दिखे।
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